Wednesday, 2 June 2010

न जाने कितने का भविष्य शिक्षा ऋण न मिलने की वजह से बर्बाद हो जाता है।

दाउदनगर (औरंगाबाद) बेटियों को पढ़ाने के लिए असमर्थ अभिभावकों को शिक्षा ऋण में अनंत संभावनाएं नजर आती हैं। सरकार खूब प्रचार करती है, मगर वास्तविक में ऐसा है नहीं। न जाने कितने का भविष्य शिक्षा ऋण न मिलने की वजह से बर्बाद हो जाता है। उदाहरण के रूप में अनुपमा कुमारी का मामला सामने है। उसके पिता शिवकुमार प्रसाद ने पिछले वर्ष अगस्त महीने में शिक्षा ऋण के लिए भारतीय स्टेट बैंक की दाउदनगर शाखा में आवेदन देने की कोशिश की। शाखा प्रबंधक ने यह कहकर टरका दिया कि मैनेजमेंट कोर्स के लिए लोन नहीं मिलता। आवेदन वापस कर दिया। बैंक के सीजेएम के पास आवेदक गए तो उन्होंने प्रबंधक को डांटा और कहा कि साधारण शिक्षा के लिए भी लोन मिलता है, इसलिए आवेदन स्वीकार करो। आवेदन को स्वीकार कर लिया गया। अगस्त से लेकर अप्रैल महीने तक लगातार आवेदक को दौड़ाया जाता रहा। मई के अंतिम सप्ताह में आरसीसीसी औरंगाबाद द्वारा यह कहकर आवेदन खारिज कर दिया गया कि मैनेजमेंट कोर्स के लिए शिक्षा ऋण नहीं मिलता। अब उसकी परीक्षा 2 जून को होनी है और पिता के पास सेकेंड समेस्टर के लिए निर्धारित रकम 3 लाख 43 रुपये नहीं है। ऐसे में बेटी का भविष्य बर्बाद होता हुआ देखने के अलावा एक बाप के पास क्या विकल्प बच जाता है। अंतिम समय आवेदन खारिज होने से पिता और पुत्री दोनों के सामने विकट स्थिति आ गई है। अनुपमा ने 28 मई को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि बैंक द्वारा लोन न देने के कारण मुझे वहां खड़ा कर दिया है जहां से निराशा और हताशा की शुरूआत होती है। और अंतत: मृत्यु को प्राप्त करना नियति बन जाती है। अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए उसने लिखा है कि कई लड़कियों को मैनेजमेंट के लिए शिक्षा ऋण मिला है, यह झूठ नहीं है। उसने लिखा है 'मैं काफी थकावट महसूस कर रही हूं और अवसाद ग्रस्त हूं, मेरे लिए यह बुरी अवस्था है।' एक जून को उसने मुख्यमंत्री के अलावा मीडिया कार्यालयों को भी अंग्रेजी में लिखा पत्र फैक्स किया है। उसे अब न्याय की उम्मीद नहीं है। लेकिन उसने जागरण को बताया कि वह चाहती है कि कम से कम अन्य छात्र-छात्राओं को ऐसा दिन न देखना पड़े। ऐसी व्यवस्था शिक्षा ऋण के मामले में सरकार को करनी चाहिए जिससे पढ़ने वालों को समय पर ऋण मिले। अब शायद बिहार सरकार की कोई पहल उसे नई जिंदगी दे सके।

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