Thursday, 27 September 2012

बेकार साबित हुई विकास योजनाएं

दाउदनगर (औरंगाबाद), जागरण प्रतिनिधि : शहर के मुख्य पथ में दोनों किनारे लाखों रुपए खर्च कर बडे़ -बड़े नाले बनाये गये हैं। चर्च से काली स्थान रोड में इसी तरह के बड़े, गहरे नाले बनाये गये हैं। दोनों को देखकर कोई भी व्यक्ति यह कह सकता है कि ये दोनों अभियांत्रिकी दोष के उदाहरण हैं। इस नाली की वजह से प्राय: परेशान मुन्ना दूबे और अनन्त प्रसाद कहते हैं कि यह आठवां आश्चर्य है। कभी डीएम आते तो उनको दिखाकर पूछता कि बताइये इस नाली का पानी बहकर कहां जाता है। दरअसल दोनों नालों का अंतिम छोर है हीं नहीं। बीच में ही छोड़ दिये गये हैं। बहाव नहीं होने से बगल के लोग परेशान रहते हैं। इसी तरह बालुगंज में एक पीसीसी पथ बना था। बारिश ने ढलाई सड़क के नीचे के बालू को खोखला कर दिया। पीसीसी पथ हवा में टंग गया है। दुर्गा क्लब पीपल तल से पूरी मुहल्ले या सिनेमा हाल के ओर जो सड़क बन रही है उसका भी वही हाल है। ये सभी अभियांत्रिकी दोष के नमूने मात्र हैं। पैसा खर्च होता है, निर्माण कार्य होते हैं, बाद में वह बेकार हो जाता है। जैसे नगर भवन के बगल में जिला परिषद ने शेड बनवाया, उसका कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। एक पदाधिकारी व्यंग्य के रूप में इसे हण्ड्रेड पीलर कह कर पुकारते हैं। सौ खंभे सिर्फ गिनने के काम आते हैं या फिर शिवगुरु चर्चा जैसे बेमतलब के नियमित कार्यक्रम के लिए। योजना लेने, स्वीकृति देने तक में दूरदर्शिता का अभाव साफ दिखता है। आखिर धन, ऊर्जा और समय की बर्बादी इस तरह करने का क्या मतलब। इस कार्यो से जुड़े एक अभियंता बोले कि योजना ली जाती है और लंबाई, चौड़ाई के साथ धन का आवंटन कर दिया जाता है, इससे हमारे हाथ बंध जाते हैं, हम निर्देशों, आदेशों को मानने भर का काम करते हैं। कृषि पर निर्भर इस इलाके में सिंचाई की स्थिति खराब है। नहरों के तटबंध टूटते रहते हैं, बवाल होते रहता है। दोष किसका है, सिर्फ अभियंता ही दोषी नहीं होते। विभागीय एसडीओ ओम प्रकाश सुमन एवं जेई गिरीश कुमार बताते हैं कि इसके लिए किसानों द्वारा अवैध रूप से आउटलेट या नाली नहर से लगाना, पशुओं के आवागमन भी प्रमुख वजह है। अंतिम छोर तक पानी नहीं पहुंचने या तटबंध टूटने के लिए मानव संसाधन हो अन्य संसाधन उसमें काफी कमी है। अभियंताओं की संख्या काफी कम है। जेई के जिम्मे 40-50 किलोमीटर का क्षेत्र रहता है, दूसरे जेई का प्रभार लेने से यह दायरा और बढ़ जाता है। ऐसे में उसकी निगरानी कैसे संभव है जबकि सहयोग के लिये कोई दूसरा मानव संसाधन नहीं है। यात्रा भत्ता देय नहीं है। कोई सभी प्वाईट की जानकारी कैसे रख सकता है। यानि परेशानी हर स्तर पर स्पष्ट दिखता है। अभियंताओं से जुड़ा हर विभाग संसाधनहीन है।

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